मंगलवार, दिसंबर 27, 2016

निरंकुश वाणी : जो लोग आरक्षण को समानता के विरुद्ध प्रचारित करते हैं, उनको हाजिर जवाब—1 : संविधान में आरक्षण नहीं प्रतिनिधित्व का मूल अधिकार!

निरंकुश वाणी : जो लोग आरक्षण को समानता के
विरुद्ध प्रचारित करते हैं, उनको हाजिर जवाब—1
संविधान में आरक्षण नहीं प्रतिनिधित्व का मूल अधिकार!

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ NC-HRD,9875066111, 27.12.216
संविधान के अनुच्छेद 14 में समानता का मूल अधिकार है। जिसका उद्देश्य प्रत्येक भारतीय के साथ कानून के समक्ष समानता और समान कानूनी संरक्षण है, जो तब ही सम्भव होता, जबकि हजारों सालों से मनमानी और जन्मजातीय-विभेदक वर्ण व्यवस्था के शिकार सभी लोगों के साथ आंख बंद करके नहीं, बल्कि उनको न्यायसंगत तरीके से वर्गीकृत करके उनके साथ समान व्यवहार किया जाता। सरकार, प्रशासन तथा व्यवस्था में सभी का समान प्रतिनिधित्व समानता और सार्वभौमिक प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्त की पहली मांग है। जिसकी स्थापना हेतु ही संविधान में सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को सरकारी शिक्षण संस्थानों और सरकारी सेवाओं में उनकी जनसंख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व का मूल अधिकार प्रदान किया गया। इसी को आमतौर पर आरक्षण कहा जाता है। संविधान में प्रदत्त यह स्थायी व्यवस्था अपूर्ण और नाकाफी है। जिसको पूना पैक्ट षड़यंत्र के मार्फत एमके गांधी ने जबरदस्ती थोपा था! फिर भी गांधी के अन्यायी वंशज इसे भी छीनने पर आमादा हैं!
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नोट : वंचित वर्ग के किसी व्यक्ति के मन में कोई व्यवस्थागत या संवैधानिक उलझन या सवाल कौंध रहा हो तो कृपया मेरे वाट्सएप 9875066111 पर लिखकर भेजें। जिससे उसका हाजिर जवाब पेश किया जा सके और आप जैसे अन्य मित्रों की शंका का भी समाधान हो सके। इससे वंचित वर्ग के लोगों में आत्मविश्वास का संचार होता है।
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
राष्ट्रीय प्रुमख—हक रक्षक दल (HRD)